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खत्री जाति की परम्परा सूर्यवंश की परम्परा है , जिसमे आगे राजा रघुजी महाराज हुए जिनके बारे में आज भी कहा जाता है , " रघुकुल रीती सदा चली आयी प्राण जाये पर बचन ना जाये " इसी परंपरा में महाराजा अज हुए जिनके पुत्र चक्रबर्ती राजा दशरथ जी महाराज का जन्म हुआ, जिनके घर मर्यादा पुरषोत्तम भगवन राम का जन्म हुआ। इनके कुल के दीपक लव और कुश से चली वंश परम्परा में श्री गुरु नानकदेव जी हुए जिनको सिख धर्म का प्रवर्तक एबं सीखो के पहले गुरु कहलाए इनके ही परंपरा में दशमे गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी हुए , जिनका जन्म पटना साहिब ( बिहार ) की इस धरती पर हुआ। गुरु गोविन्द सिंह ने महाराज रघु की गौरवशाली परम्परा का निर्वहन करते हुए धर्म की रक्षा हेतु अपने चारो बेटो को कुर्बान कर दिआ। दो पुत्र दिवार में चुनवा दिए गए , दो युद्ध में शहिद हो गए। अपने चारो पुत्रो के शोक में विहवल अपनी पत्नी को इन्होने जो कहा था, जो आज भी ना सिर्फ सिख बल्कि पूरी हिन्दू जाती को प्रेरणा देता है
" देश धर्म की रक्षा को , वार दिए पुत्र चार,
ये चार मरे तो क्या हुआ , ये जीवित कई हज़
